Thursday 29 August 2013

Bhagwan SHIV Ko Arpit karen



- शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव को चावल अर्पित करने से से लक्ष्मी यानी धन-संपत्ति व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
-
भगवान शिव को तिल चढ़ाने से सभी पापों का तुरंत नाश हो जाता है।
-
जौ अर्पित करने से भगवान शिव अपने भक्तों को सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं।
-
यदि आप संतान प्राप्ति चाहते हैं तो इसके लिए भगवान शिव को गेहूं अर्पित करने का विधान है।

-
मूंग दाल अर्पित करने से सुखों की प्राप्ति होती है।
-
भगवान शिव को प्रियंगु (एक प्रकार का अनाज) अर्पित करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह सभी अन्न यथाशक्ति भगवान को अर्पण करने पश्चात गरीबों में वितरित कर देना चाहिए। तभी फल की प्राप्ति होती है।

Wednesday 28 August 2013

शिवपुराण का संकटनाशक शिव मंत्र



शिवपुराण का यह संकटनाशक शिव मंत्र कई लोगों को नहीं है पता
-
शाम को स्नान के बाद यथासंभव सफेद वस्त्र पहन शिवालय में गाय के दूध मिले पवित्र जल में अक्षत, तिल व सफेद चंदन मिलाकर नीचे लिखें मंत्र से शिवलिंग पर जलधारा अर्पित कर चंदन, बिल्वपत्र, फूल, जनेऊ व दूध या मावे की मिठाई का भोग लगाकर शिव की धूप, दीप, कर्पूर आरती कर कष्टों से छुटकारे या संकटमुक्त जीवन की कामना करें -

ऊँ नम: शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नम: ऊँ

-
शिवलिंग पर चढ़ाए जल को चरणामृत रूप में ग्रहण करें व थोड़ा जल लाकर घर के हर कोने में छिड़कें।

-
इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से यथाशक्ति जप भी मनोरथसिद्धि करने वाला होता है।

Friday 23 August 2013

दर्शन एवं पूजन के समय क्या करें

दर्शन एवं पूजन के समय क्या करें

मंत्र जाप करते समय


यदि परमात्मा के समक्ष बैठकर जाप करना हो तो निम्न ढंग से करें-
-
जमीन पर शुद्ध ऊनी आसन बिछाकर बैठें।
-
पद्मासन या सुखासन (पालथी लगाकर) बैठें। कमर से झुकें नहीं। चेहरे को भी सीधा रखें।
-
माला दाहिने हाथ की उँगलियों पर अँगूठे के पोर से फेरें। नाखून का स्पर्श माला को न हो, इसकी पूरी सावधानी रखें।
-
माला नाभि से नीचे नहीं, नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए एवं सीने से 4 अंगुल दूर सामने रखें।
-
प्लास्टिक की माला न फेरें।
-
जाप करते समय आँखें परमात्मा के सामने या दो भौंहों के बीच, या नाक पर रखें या फिर आँखें मूँद लें। इधर-उधर ताँकझाँक न करें।
-
जाप करते समय माला नीचे न गिराएँ। जमीन पर न रखें, आसन पर या डिब्बी में रखें।

घंटनाद क्यों? कब?
दर्शन करने के पश्चात बाहर निकलते समय घंट बजाकर, परमात्मा के दर्शन-पूजन करने से उत्पन्न खुशी व प्रसन्नता अभिव्यक्त की जाती है। पर उसमें इतनी सावधानी रखनी चाहिए कि अपने घंटनाद से किसी की प्रार्थना व पूजा मे खलल न पहुँचे। बहुत जोरों से घंटनाद नहीं करना चाहिए।

मंदिर से कैसे निकलें?
इसके बाद मंदिर से बाहर निकलते वक्त परमात्मा की तरफ पीठ न करते हुए उलटे पाँव या तिरछा होकर निकलें। मंदिर के बाहर आकर चौकी पर या सीढ़ियों के पास बनी हुई बैठक पर एक-दो मिनट रुकें। बैठकर या खड़े आँखें मूँदकर बंद आँखों के परदे पर परमात्मा की प्रतिमा को उभरने दें। यदि हमने स्वस्थ तन-मन-नयन से परमात्मा के दर्शन किए हैं, तो निश्चित ही परमात्मा की छवि उभरेगी। यह एक सूचक है।

आरती मंगलदीप क्यों?
यदि शाम के समय हम मंदिर में गए होंऔर आरती का समय हो गया होतो अवश्य आरती व मंगलदीप उतारने चाहिए। आरती से मन की अरति-अस्वस्थता दूर हो जाती हैमन एवं प्राण परमात्मा के प्रेम के लिए आर्त्त बनते हैंआर्द्र बन जाते हैं।
आरती की थाली दोनों हाथों में लेकर बहुमान के साथ भावविभोर होकर आरती बाएँ हाथ की तरफ से ऊपर उठाएँ और दाहिने हाथ की तरफ से नीचे लाकर वापस ऊपर उठाएँ। इस तरह आरती का गान गाने के साथ-साथ ढाई बार ऊपर से नीचे घुमाना है। ढाई वर्तुल कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रतीक है।
आरती होने के पश्चात मंगलदीप उतारने का है। वास्तव में मंगलदीप अग्नि की ऊपर उठती ज्वाला भी भाँति ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर लाना-ले जाना है (वर्तुलाकार नहीं।) पर फिलहाल आरती की भाँति ही वर्तुलाकार घुमाने का रिवाज है। यदि अन्य जन उपस्थित हों तो उन्हें मंगलदीप उतारने का मौका दें।

दर्शन एवं पूजन के समय क्या करें

दर्शन एवं पूजन के समय क्या करें

मंत्र जाप करते समय


यदि परमात्मा के समक्ष बैठकर जाप करना हो तो निम्न ढंग से करें-
-
जमीन पर शुद्ध ऊनी आसन बिछाकर बैठें।
-
पद्मासन या सुखासन (पालथी लगाकर) बैठें। कमर से झुकें नहीं। चेहरे को भी सीधा रखें।
-
माला दाहिने हाथ की उँगलियों पर अँगूठे के पोर से फेरें। नाखून का स्पर्श माला को न हो, इसकी पूरी सावधानी रखें।
-
माला नाभि से नीचे नहीं, नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए एवं सीने से 4 अंगुल दूर सामने रखें।
-
प्लास्टिक की माला न फेरें।
-
जाप करते समय आँखें परमात्मा के सामने या दो भौंहों के बीच, या नाक पर रखें या फिर आँखें मूँद लें। इधर-उधर ताँकझाँक न करें।
-
जाप करते समय माला नीचे न गिराएँ। जमीन पर न रखें, आसन पर या डिब्बी में रखें।

घंटनाद क्यों? कब?
दर्शन करने के पश्चात बाहर निकलते समय घंट बजाकर, परमात्मा के दर्शन-पूजन करने से उत्पन्न खुशी व प्रसन्नता अभिव्यक्त की जाती है। पर उसमें इतनी सावधानी रखनी चाहिए कि अपने घंटनाद से किसी की प्रार्थना व पूजा मे खलल न पहुँचे। बहुत जोरों से घंटनाद नहीं करना चाहिए।

मंदिर से कैसे निकलें?
इसके बाद मंदिर से बाहर निकलते वक्त परमात्मा की तरफ पीठ न करते हुए उलटे पाँव या तिरछा होकर निकलें। मंदिर के बाहर आकर चौकी पर या सीढ़ियों के पास बनी हुई बैठक पर एक-दो मिनट रुकें। बैठकर या खड़े आँखें मूँदकर बंद आँखों के परदे पर परमात्मा की प्रतिमा को उभरने दें। यदि हमने स्वस्थ तन-मन-नयन से परमात्मा के दर्शन किए हैं, तो निश्चित ही परमात्मा की छवि उभरेगी। यह एक सूचक है।

आरती मंगलदीप क्यों?
यदि शाम के समय हम मंदिर में गए होंऔर आरती का समय हो गया होतो अवश्य आरती व मंगलदीप उतारने चाहिए। आरती से मन की अरति-अस्वस्थता दूर हो जाती हैमन एवं प्राण परमात्मा के प्रेम के लिए आर्त्त बनते हैंआर्द्र बन जाते हैं।
आरती की थाली दोनों हाथों में लेकर बहुमान के साथ भावविभोर होकर आरती बाएँ हाथ की तरफ से ऊपर उठाएँ और दाहिने हाथ की तरफ से नीचे लाकर वापस ऊपर उठाएँ। इस तरह आरती का गान गाने के साथ-साथ ढाई बार ऊपर से नीचे घुमाना है। ढाई वर्तुल कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रतीक है।
आरती होने के पश्चात मंगलदीप उतारने का है। वास्तव में मंगलदीप अग्नि की ऊपर उठती ज्वाला भी भाँति ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर लाना-ले जाना है (वर्तुलाकार नहीं।) पर फिलहाल आरती की भाँति ही वर्तुलाकार घुमाने का रिवाज है। यदि अन्य जन उपस्थित हों तो उन्हें मंगलदीप उतारने का मौका दें।