शिवलिंग
की वेदी, महावेदी और लिंग भगवान शंकर
है। सिर्फ लिंग की ही पूजा करने से त्रिदेव एंव आदि शक्ति की पूजा हो जाती है। शान्ति और परम आनन्द का प्रमुख स्रोत है, ईश्वर
सभी उत्कृष्ण गुणों से परिपूर्ण है। प्रत्येक
मनुष्य अपना कल्याण चाहता है, यह उसकी स्वाभाविक
प्रकृति है। सारी सृष्टि ही शिवलिंग है। इसका एक-एक कण शिवलिंग में समाहित है। ईश्वर ने अपने समस्त पृ्रकृति
में फैले हुये अपने दिव्य गुणों का लघु रूप दिया तो पहले मानव
की उत्पत्ति हुयी। शिवलिंग को लिंग और योनि के मिलन के रूप में नहीं अपितु
इसे सृष्टि सजृन के प्रतीक रूप में देखना चाहिए।
हमेशा शिवलिंग
की परिक्रमा बांयी ओर से प्रारम्भ कर जलधारी के निकले हुए भाग यानि
स्रोत तक फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।
जलधारी या अरघा को पैरों से लाघना नहीं चाहिए क्योंकि माना जाता है कि उस
स्थान पर उर्जा और शक्ति का भण्डार होता है।
जलधारी को
लांघते समय पैरों के फैलने से वार्य या रज इनसे जुड़ी विभिन्न
प्रकार की शारीरिक क्रियाओं पर शक्तिशाली उर्जा का दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः
इस देव-दोष से बचना चाहिए।
शिवलिंग
भगवान शंकर का एक अभिन्न अंग है, जो अति गर्म है, जिस
कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। मन्दिरों
में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा होता है जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरा करती है
जिससे शिवलिंग की गर्मी धीरे-धीरे शान्त होकर उसमें से सकारात्मतक उर्जा
प्रवाहित होने लगती है। जो भक्तगणों के कष्टों को
दूर करती है। घर में शिवलिंग रखने से इस प्रकार की व्यवस्था न हो पाने के कारण उसमें से निकलने वाली गर्म उर्जा परिवार के लोगों
को खासकर महिलाओं को नुकसान पहुंचाती है। जैसे- सिर दर्द, स्त्री रोग,
जोडो में
दर्द, मन
अशांत, घरेलू
झगड़े, आर्थिक अस्थिरिता आदि प्रकार की समस्यायें घर
में बनी रहती है।
घर में
शिवलिंग रखने के इच्छुक है तो विधिवत स्थापना कराये और शिवलिंग
के स्थापना स्थल पर ऐसी व्यवस्था करे कि
शिवलिंग पर
घड़ा उपर रख दे जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरती रहे।
कब करें
महामृत्युंजय मंत्र जाप? जब आप पर बहुत सी बाधाएँ हो
महामृत्युंजय
मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता
की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे
से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का
जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो
यौवन की
सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अत: इस मंत्र का यथासंभव जप करना
चाहिए।
निम्नलिखित स्थितियों में इस
मंत्र का जाप कराया जाता है-
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा
होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने
पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना
हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर
रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का
अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो
गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश
हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
महामृत्युंजय जप मंत्र: महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप
व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप
में भी इस मंत्र का जप किया
जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। जप विधि