Monday 23 December 2013

||महा मृत्‍युंजय मंत्र ||



||महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

!! ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!  
ओम त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठर के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमयी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।

Wednesday 4 December 2013

क्यों शिव को कहते हैं रुद्र ?



क्यों शिव को कहते हैं रुद्र ?
 
रुद्र का शाब्दिक अर्थ होता है - रुत् यानी दु:खों का अंत करने वाला। यही वजह है कि शिव को दु:खों को नाश करने वाले देवता के रुप में भी पूजा जाता है।
व्यावहारिक जीवन में कोई दु:खों को तभी भोगता है, जब तन, मन या कर्म किसी न किसी रूप में अपवित्र होते हैं। शिव के रुद्र रूप की आराधना का महत्व यही है कि इससे व्यक्ति का चित्त पवित्र रहता है और वह ऐसे कर्म और विचारों से दूर होता है, जो मन में बुरे भाव पैदा करे। शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाश करते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम से जाने जाते हैं। जानिए ग्यारह रूद्र रूप व शक्तियों से जुड़ी बातें -
शम्भू - शास्त्रों के मुताबिक यह रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है। इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं।
पिनाकी - ज्ञान शक्ति रुपी चारों वेदों के के स्वरुप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं।
गिरीश - कैलाशवासी होने से रुद्र का तीसरा रुप गिरीश कहलाता है। इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं।
स्थाणु - समाधि, तप और आत्मलीन होने से रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाता है। इस रुप में पार्वती रूप शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है।
भर्ग - भगवान रुद्र का यह रुप बहुत तेजोमयी है। इस रुप में रुद्र हर भय और पीड़ा का नाश करने वाले होते हैं।
भव - रुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है।
सदाशिव - रुद्र का यह स्वरुप निराकार ब्रह्म का साकार रूप माना जाता है, जो सभी वैभव, सुख और आनंद देने वाला माना जाता है।
शिव - यह रुद्र रूप अंतहीन सुख देने वाला यानी कल्याण करने वाला माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधना महत्वपूर्ण मानी जाती है।
हर - इस रुप में नाग धारण करने वाले रुद्र शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल पर इन का नियंत्रण होता है।
शर्व - काल को भी काबू में रखने वाला यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है।
कपाली - कपाल रखने के कारण रुद्र का यह रूप कपाली कहलाता है। इस रूप में ही दक्ष का दंभ नष्ट किया। किंतु प्राणीमात्र के लिए रुद्र का यही रूप समस्त सुख देने वाला माना जाता है

क्यों शिव को कहते हैं रुद्र ?



क्यों शिव को कहते हैं रुद्र ?
 
रुद्र का शाब्दिक अर्थ होता है - रुत् यानी दु:खों का अंत करने वाला। यही वजह है कि शिव को दु:खों को नाश करने वाले देवता के रुप में भी पूजा जाता है।
व्यावहारिक जीवन में कोई दु:खों को तभी भोगता है, जब तन, मन या कर्म किसी न किसी रूप में अपवित्र होते हैं। शिव के रुद्र रूप की आराधना का महत्व यही है कि इससे व्यक्ति का चित्त पवित्र रहता है और वह ऐसे कर्म और विचारों से दूर होता है, जो मन में बुरे भाव पैदा करे। शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाश करते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम से जाने जाते हैं। जानिए ग्यारह रूद्र रूप व शक्तियों से जुड़ी बातें -
शम्भू - शास्त्रों के मुताबिक यह रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है। इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं।
पिनाकी - ज्ञान शक्ति रुपी चारों वेदों के के स्वरुप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं।
गिरीश - कैलाशवासी होने से रुद्र का तीसरा रुप गिरीश कहलाता है। इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं।
स्थाणु - समाधि, तप और आत्मलीन होने से रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाता है। इस रुप में पार्वती रूप शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है।
भर्ग - भगवान रुद्र का यह रुप बहुत तेजोमयी है। इस रुप में रुद्र हर भय और पीड़ा का नाश करने वाले होते हैं।
भव - रुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है।
सदाशिव - रुद्र का यह स्वरुप निराकार ब्रह्म का साकार रूप माना जाता है, जो सभी वैभव, सुख और आनंद देने वाला माना जाता है।
शिव - यह रुद्र रूप अंतहीन सुख देने वाला यानी कल्याण करने वाला माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधना महत्वपूर्ण मानी जाती है।
हर - इस रुप में नाग धारण करने वाले रुद्र शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल पर इन का नियंत्रण होता है।
शर्व - काल को भी काबू में रखने वाला यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है।
कपाली - कपाल रखने के कारण रुद्र का यह रूप कपाली कहलाता है। इस रूप में ही दक्ष का दंभ नष्ट किया। किंतु प्राणीमात्र के लिए रुद्र का यही रूप समस्त सुख देने वाला माना जाता है

Tuesday 12 November 2013

शिवलिंग



शिवलिंग की वेदी, महावेदी और लिंग भगवान शंकर है। सिर्फ लिंग की ही पूजा करने से त्रिदेव एंव आदि शक्ति की पूजा हो जाती है। शान्ति और परम आनन्द का प्रमुख स्रोत है, ईश्वर सभी उत्कृष्ण गुणों से परिपूर्ण है। प्रत्येक मनुष्य अपना कल्याण चाहता है, यह उसकी स्वाभाविक प्रकृति है। सारी सृष्टि ही शिवलिंग है। इसका एक-एक कण शिवलिंग में समाहित है। ईश्वर ने अपने समस्त पृ्रकृति में फैले हुये अपने दिव्य गुणों का लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुयी। शिवलिंग को लिंग और योनि के मिलन के रूप में नहीं अपितु इसे सृष्टि सजृन के प्रतीक रूप में देखना चाहिए।


हमेशा शिवलिंग की परिक्रमा बांयी ओर से प्रारम्भ कर जलधारी के निकले हुए भाग यानि स्रोत तक फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। जलधारी या अरघा को पैरों से लाघना नहीं चाहिए क्योंकि माना जाता है कि उस स्थान पर उर्जा और शक्ति का भण्डार होता है।
जलधारी को लांघते समय पैरों के फैलने से वार्य या रज इनसे जुड़ी विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं पर शक्तिशाली उर्जा का दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः इस देव-दोष से बचना चाहिए।
शिवलिंग भगवान शंकर का एक अभिन्न अंग है, जो अति गर्म है, जिस कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। मन्दिरों में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा होता है जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरा करती है जिससे शिवलिंग की गर्मी धीरे-धीरे शान्त होकर उसमें से सकारात्मतक उर्जा प्रवाहित होने लगती है। जो भक्तगणों के कष्टों को दूर करती है। घर में शिवलिंग रखने से इस प्रकार की व्यवस्था न हो पाने के कारण उसमें से निकलने वाली गर्म उर्जा परिवार के लोगों को खासकर महिलाओं को नुकसान पहुंचाती है। जैसे- सिर दर्द, स्त्री रोग, जोडो में दर्द, मन अशांत, घरेलू झगड़े, आर्थिक अस्थिरिता आदि प्रकार की समस्यायें घर में बनी रहती है।
घर में शिवलिंग रखने के इच्छुक है तो विधिवत स्थापना कराये और शिवलिंग के स्थापना स्थल पर ऐसी व्यवस्था करे कि शिवलिंग पर घड़ा उपर रख दे जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरती रहे।
कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप? जब आप पर बहुत सी बाधाएँ हो
महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अत: इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।

निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-
(1)
ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2)
किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3)
जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4)
हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5)
राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6)
धन-हानि हो रही हो।
(7)
मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8)
राजभय हो।
(9)
मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10)
राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11)
मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12)
त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

महामृत्युंजय जप मंत्र: महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। जप विधि